होली का त्यौहार, इस साल का वह समय है जब भारत के लोग एक-दूसरे को इस प्रकार रंग लगाते हैं कि लोग अपने चेहरे भी नहीं पहचान पात।
पौराणिक मान्यता के अनुसार होली का त्यौहार भारतवर्ष में प्राचीन काल से मनाया जा रहा ह। हिंदू कैलेंडर के अनुसार फाल्गुन मास की पूर्णिमा के दिन होली का त्योहार मनाया जाता हैं।
फाल्गुन मास यानी हिंदू कैलेंडर के हिसाब से इसे 12th मंथ माना जाता है। अंग्रेजी कैलेंडर यानी कि ग्रेगोरियन कैलेंडर के हिसाब से यह 3rd मंथ है जिसे हम मार्च कहते हैं।
अब यह जो फरवरी और मार्च का महीना होता है यह देखा जाए तो शीतकाल और गरम काल के बीच में एक छोटा सा ट्रांजीशन का समय कहलाता है। जिसे अंग्रेजी में हम स्प्रिंग सीजन, यानी वसंत ऋतु के नाम से जानते हैं।
तो हर साल फरवरी या मार्च महीने में, हिंदू तिथि,अपितु पूर्णिमा तिथि के अनुसार होली का त्यौहार मनाया जाता है।
इस साल होली का त्यौहार बुधवार मार्च 8th पे मनाया जाएगा।
होली के एक दिन पहले, शाम के समय एक और परंपरा निभाई जाती है जिसे कहते हैं होलिका दहन। इसे छोटी होली का नाम भी दिया गया है।
अब हम जानेंगे होलिका दहन क्यों मनाते हैं?
आपने प्रहलाद और हिरण्यकश्यप की कहानी सुनी होगी..हिरण्यकशिप एक शक्तिशाली राजा था और वह स्वयं अपने आपको ब्रह्मांड में सबसे शक्तिशाली होने का दावा करता था और साथ ही साथ अपने आपको भगवान भी मानता था।
यहां तक कि उसने अपने आसपास सभी को यह आदेश दिया था कि वह किसी भी अन्य देवी देवता की पूजा ना करें और सिर्फ उनका ही पूजन करें।
हिरण्यकश्यप का एक बेटा था जिसका नाम था प्रह्लाद। प्रह्लाद अपने पिता के आदेश को नहीं मानता था और वह भगवान विष्णु का भक्त था और उन्हें ही परम ईश्वर मानता था। और सदा उनकी ही आराधना करता था।
अब यह चीज उसके पिता हिरण्यकश्यप को बहुत क्रोधित करती थी.. उसने कई उपाय किए जिससे कि उसका बेटा प्रह्लाद भगवान विष्णु की पूजा ना कर सके।
यहां तक कि उसने अपने सैनिकों को प्रह्लाद को मारने के लिए आदेश भी दिए, परंतु हर बार प्रह्लाद बच जाता।
हिरण्यकश्यप ने तब अपनी बहन होलिका की मदद मांगी। जिसके पास आग में ना जलने का वरदान प्राप्त था। वरदान में उसे ऐसी चादर मिली थी जिसे ओढ़ने के बाद आग उसे जला नहीं सकती।
हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद को जलाकर मारने की योजना बनाई और अपनी बहन होलिका की गोद में बैठा कर उसे आग के हवाले कर दिया। परंतु वरदान वाली चादर भी आग में होलिका के साथ जल गई और प्रहलाद का बाल भी बांका नहीं हो पाया।
और आगे जैसा कि आप जानते हैं हिरण्यकश्यप का वध करने के लिए स्वयं भगवान विष्णु ने नरसिंह का अवतार लिया। तभी से होलिका दहन की परंपरा चली आ रही है।
राक्षस हिरण्यकश्यप की बहन राक्षसी होलिका के जलने की कहानी को बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है। और यह मुख्य होली त्यौहार के एक दिन पहले शाम के समय कुछ लकड़ियां जलाकर बोनफायर की तरह मनाया जाता है। होलिका दहन की परंपरा को ईश्वर के प्रति अटूट आस्था और भक्ति के उदाहरण के रूप में देखा जाता है। और साथ ही बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है। तो यह था होलिका दहन परंपरा मनाने के पीछे की कहानी।
अब हम जानेंगे होली त्यौहार मनाने के पीछे की कहानी और मान्यता क्या है।
जैसा कि आप जानते हैं यह त्योहार भारतवर्ष में प्राचीन काल से मनाया जाता रहा है।
1. इसी दिन प्रथम पुरुष मनु का जनम हुआ था।
2. इसी दिन कामदेव का भी पुनर्जन्म हुआ था। जैसा कि आप जानते हैं माँ पार्वती भगवान शिव से विवाह करना चाहती थी । लेकिन भगवान शिव अपने ध्यान में लीन थे। उनका ध्यान भंग करने के लिए माँ पार्वती ने कामदेव की मदद मांगी। कामदेव ने भगवान शिव पर एक प्रेम बाण चलाया, जिससे उनका ध्यान टूट गया। उसी समय क्रोध में भगवान शिव की तीसरी आंख खुल गई, और कामदेव का शरीर भस्मा हो गया। और फिर होली के त्यौहार पर कामदेव का पुनर्जन्म हुआ।
3. इसके अतिरिक्त जैसा कि मैंने बताया एक दिन पहले होलिका दहन मनाया जाता है। और फिर अगले दिन होली मनाई जाती है। तो इसी दिन भगवान विष्णु नरसिंह अवतार के रूप में प्रकट हुए और राक्षस हिरण्यकश्यप का वध किया।
4. और फिर त्रेता युग में इसी दिन श्रीकृष्ण ने अपनी बाल अवस्था में राक्षसी पूतना का भी वध किया।
5. साथ ही श्री कृष्ण होली के दिन राधारानी के गांव बरसाने जाकर खेलते थे। इससे होली के त्यौहार को श्री कृष्ण और राधा रानी के प्रेम के रूप में भी देखा जाता है।
तो यह थी कुछ पौराणिक मान्यता जिससे होली का त्यौहार जुड़ा है। और इस त्यौहार को भारतवर्ष में हर पंथ / मजहब के लोग खुशी से मनाते हैं, लेकिन विशेष रूप से हिंदू धर्म, सनातन धर्म के लोगों की अटूट मान्यता और आस्था जुड़ी है इन पौराणिक कथाओं और मान्यताओं से।
आप सभी को होली के शुभ दिन पर ढेर सारी शुभकामनाएं, आपका दिन मंगलमय हो। धन्यवाद।